
नरेंद्र मोदी का तीन देशों का विदेशी दौरा: भारत की वैश्विक और खाड़ी साझेदारियों को मज़बूत करने की रणनीतिक पहल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हालिया तीन देशों का विदेशी दौरा एक बार फिर यह दिखाता है कि तेजी से बदलती वैश्विक परिस्थितियों में भारत अपनी कूटनीतिक महत्वाकांक्षाओं को किस तरह आगे बढ़ा रहा है। यह दौरा सिर्फ औपचारिक बैठकों और स्वागत समारोहों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसके पीछे एक गहरी रणनीति साफ दिखाई देती है। इसका मकसद पारंपरिक दायरों से आगे बढ़कर साझेदारियों को मजबूत करना और भारत की वैश्विक भूमिका को एक नए, अधिक विविध चरण में ले जाना है। इस दौरे में शामिल मस्कट की यात्रा खास तौर पर अहम रही, जिसने ऊर्जा संबंधों से आगे बढ़कर खाड़ी क्षेत्र पर भारत के बढ़ते फोकस को उजागर किया।
व्यापक संदेश के साथ एक अहम दौरा
भारतीय प्रधानमंत्रियों के विदेशी दौरों पर हमेशा करीबी नजर रखी जाती है — सिर्फ किए गए समझौतों के लिए नहीं, बल्कि उन संकेतों के लिए भी जो वे दुनिया को देते हैं। यह तीन देशों का दौरा ऐसे समय में हुआ है जब वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं, आर्थिक अनिश्चितताएं बनी हुई हैं और देश भरोसेमंद साझेदारों की तलाश में हैं। मोदी के नेतृत्व में भारत ने खुद को एक आत्मविश्वासी और सक्रिय शक्ति के रूप में पेश किया है — जो अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करते हुए कई क्षेत्रों के साथ जुड़ने को तैयार है।
इस दौरे में शामिल हर देश भारत की कूटनीतिक सोच में अलग भूमिका निभाता है। ये सभी मिलकर यह दिखाते हैं कि नई दिल्ली राजनीतिक संपर्क, आर्थिक सहयोग और लोगों के बीच संबंधों के बीच संतुलन बनाना चाहती है। यह दौरा किसी एक मुद्दे तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें कूटनीति, व्यापार, सुरक्षा और सांस्कृतिक जुड़ाव का बहुआयामी दृष्टिकोण नजर आया।
मस्कट क्यों है खास
मस्कट में रुकना इस दौरे का सबसे महत्वपूर्ण पहलू माना जा रहा है। ओमान लंबे समय से खाड़ी क्षेत्र में भारत का भरोसेमंद साझेदार रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में यह रिश्ता तेल और गैस से कहीं आगे बढ़ चुका है। मोदी का ओमानी राजधानी का दौरा इस बात का संकेत है कि भारत इस साझेदारी को एक अधिक व्यापक और मजबूत स्तर पर ले जाना चाहता है।
दशकों तक खाड़ी देशों के साथ भारत के रिश्ते मुख्य रूप से ऊर्जा सुरक्षा और वहां काम करने वाले लाखों भारतीय प्रवासियों के कल्याण पर आधारित रहे। ये दोनों मुद्दे आज भी बेहद अहम हैं, लेकिन मस्कट यात्रा यह साफ करती है कि अब फोकस रणनीतिक सहयोग, रक्षा संबंधों, समुद्री सुरक्षा और उभरते आर्थिक क्षेत्रों पर भी है।
तेल पर निर्भरता से आगे की सोच
भारत–ओमान रिश्तों का एक अहम पहलू यह है कि दोनों देश तेल आधारित सहयोग पर अत्यधिक निर्भरता कम करना चाहते हैं। वैश्विक ऊर्जा बाजार में बदलाव और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ते कदमों के बीच, दोनों देश नए क्षेत्रों में सहयोग तलाश रहे हैं। इनमें ग्रीन एनर्जी, हाइड्रोजन परियोजनाएं, लॉजिस्टिक्स, पर्यटन और तकनीक आधारित उद्योग शामिल हैं।
इसके अलावा, अहम समुद्री मार्गों पर ओमान की रणनीतिक स्थिति भारत के इंडो-पैसिफिक विज़न के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। बंदरगाह विकास, शिपिंग और सप्लाई चेन में बढ़ता सहयोग भारत को पश्चिमी हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी मजबूत करने में मदद कर सकता है और क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान दे सकता है।
रक्षा और सुरक्षा सहयोग
मस्कट यात्रा का एक और महत्वपूर्ण पहलू रक्षा सहयोग है। भारत और ओमान के बीच पहले से ही मजबूत सैन्य संबंध हैं, जिनमें नियमित संयुक्त अभ्यास और आपसी सहयोग की व्यवस्थाएं शामिल हैं। मस्कट में हुई बातचीत से इस साझेदारी के और मजबूत होने की उम्मीद है, खासकर ऐसे समय में जब समुद्री सुरक्षा और नौवहन की स्वतंत्रता वैश्विक चिंता का विषय बन चुकी है।
खाड़ी क्षेत्र में एक संतुलित और स्थिर देश के रूप में ओमान की भूमिका भारत के लिए रणनीतिक रूप से और भी अहम हो जाती है। मस्कट के साथ रक्षा संबंध मजबूत करने से भारत अपने हितों की रक्षा कर सकता है, बिना किसी क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता में उलझे।
लोगों के बीच रिश्ते बने आधार
रणनीति और अर्थव्यवस्था से आगे, भारत–ओमान संबंधों की जड़ें लोगों के बीच रिश्तों में गहराई से जुड़ी हैं। ओमान में बड़ी संख्या में भारतीय समुदाय रहता और काम करता है, जो स्वास्थ्य, शिक्षा, निर्माण और व्यापार जैसे क्षेत्रों में अहम योगदान देता है। मोदी की यह यात्रा इस मानवीय सेतु को भी मान्यता देती है, जो दोनों देशों के रिश्तों की सबसे मजबूत कड़ी है।
सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शैक्षणिक सहयोग और कौशल विकास से जुड़े प्रयास अब कूटनीतिक बातचीत का अहम हिस्सा बनते जा रहे हैं। इससे आपसी समझ बढ़ती है और मुश्किल दौर में भी रिश्तों की मजबूती बनी रहती है।
भारत के बढ़ते कूटनीतिक आत्मविश्वास की झलक
कुल मिलाकर, नरेंद्र मोदी का यह तीन देशों का दौरा भारत के बढ़ते कूटनीतिक आत्मविश्वास को दर्शाता है। भारत अब वैश्विक घटनाक्रमों पर सिर्फ प्रतिक्रिया देने वाला देश नहीं रहा, बल्कि अपनी शर्तों पर साझेदारी, आपसी सम्मान और दीर्घकालिक सहयोग पर आधारित कहानी गढ़ रहा है।
खास तौर पर मस्कट यात्रा यह बताती है कि भारत खाड़ी क्षेत्र के साथ अपने रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित करना चाहता है। तेल से आगे बढ़कर रणनीतिक, आर्थिक और मानवीय संबंधों पर फोकस कर भारत एक संतुलित और भविष्य के लिए तैयार साझेदारी की नींव रख रहा है।
आगे की राह
जैसे-जैसे यह दौरा समाप्त हो रहा है, इसका असली असर सिर्फ संयुक्त बयानों या समझौता ज्ञापनों से नहीं, बल्कि उनके ज़मीनी स्तर पर लागू होने से आंका जाएगा। भारत के लिए संदेश साफ है — आज की कूटनीति गहराई, विविधता और टिकाऊ रिश्तों की मांग करती है।
ओमान जैसे भरोसेमंद साझेदारों तक नरेंद्र मोदी की पहुंच यह दिखाती है कि भारत बदलती वैश्विक वास्तविकताओं के अनुरूप ढल सकने वाले रिश्तों में निवेश कर रहा है। इससे न केवल भारत अपने हित सुरक्षित कर रहा है, बल्कि दुनिया के मंच पर खुद को एक भरोसेमंद और दूरदर्शी साझेदार के रूप में भी स्थापित कर रहा है।
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